इज्जत का मूल्य
मां जी अब ना तो गहनों का शौक रहा और ना ही उम्र रही
" मां जी अब ना तो उम्र रही और ना ही शौक रहा। अब इन गहनों का मैं क्या करूंगी? इन्हें आप ही रख लीजिए। जिसे देना हो उन्हें दे देना। अब मुझे इनकी जरूरत नहीं है। वैसे भी इन गहनों ने मेरे चरित्र पर दाग लगा दिए थे। अब मुझे ऐसी दागदार चीजें पसंद नहीं "
सरला के मुंह से ये बात सुनकर सासू मां संती देवी हैरान रह गई। आखिर एक गलती की इतनी बड़ी सजा मिलेगी ये उन्होंने कभी सोचा नहीं था। आज तक सरला ने उन्हें माफ नहीं किया। सोच सोच कर अपने पल्लू से अपने आंसुओं को पोछ रही थी।
सरला तो ये कहकर अपने कमरे में तैयार होने चली गई। संती देवी ने आशा भरी नजरों से अपने बेटे मोहन की तरफ देखा। अपनी मां को इस तरह कातर भाव से देखते देखकर मोहन से बर्दाश्त नहीं हुआ। वो भी सरला के पीछे-पीछे कमरे में चला गया। वहां और भी महिलाएं मौजूद थी। मोहन को कमरे में आया देखकर सब लोग उस कमरे से बाहर निकल गई। अब कमरे में सिर्फ सरला और मोहन ही थे।
मोहन ने सरला से कहा,
" आज इस खुशी के दिन पर इन सब बातों का क्या तुक था? मां का दिल रखने के लिए गहने पहन लेती"
" आप तो जानते हैं ना कि मुझे गहने पहनने का कोई शौक नहीं है। फिर मुझे आकर क्यों कह रहे हो?"
" तुम पिछली बातों को भूल क्यों नहीं जाती। वक्त बदल चुका है। अब तो लोग भी बदल चुके हैं। पर तुम तो एक ही बात को पकड़ कर बैठी हो"
" माना कि वक्त बदल चुका है। लोग भी अब शायद बदल चुके हैं। पर उस दिन की टीस तो आज भी मन में है। वो ही तो नहीं जाती"
" देखो तुम मेरी बात...."
" जबरदस्ती मत कीजिए। आपको पता है कि मैं गहने नहीं पहनने वाली"
सरला ने पलट कर मोहन को कहा। पर जिन नज़रों से उसने मोहन की और देखा, उन नजरों को वो झेल नहीं पाया और चुपचाप कमरे के बाहर निकल गया।
आज सरला के बेटे की शादी है। घर में नयी बहू आने वाली है। इस पीढ़ी की पहली बहू, सरला के बड़े बेटे अमर की पत्नी और संती देवी की पोत बहु। घर में अच्छा खासी रौनक थी। और मेहमानों का अच्छा खासा आना लगा हुआ था। बाहर हलवाई पकवान बनाने में जुटे हुए थे। पूरा घर पकवानों से महक उठा था। मेहमान आते जा रहे थे और खाना खाकर फ्री होते जा रहे थे।
बारात भी बस दो घंटे बाद रवाना होने वाली थी। घर की महिलाएं और लड़कियां सजने संवरने में लगी हुई थी। सब एक से बढ़कर एक सुंदर लगना चाहती थी। आखिर बारात में धूम जो मचानी थी।
तो लड़के और पुरुष भी क्या कम थे? सब खाना खा पीकर फटाफट तैयार होने में लगे हुए थे। आखिर बारात में कहीं कोई कमी थोड़ी ना रहनी चाहिए थी। जबकि बुजुर्ग महिलाएं एक तरफ टोली बनाकर सज संवरकर मंगल गीत गा रही थी। वही बुजुर्ग पुरुष साफा पहनकर तैयार होकर अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ चुके थे।
इधर सरला अभी तैयार हो रही थी कि संती देवी ने सरला को अपने कमरे में बुला लिया। उन्हें कोई काम होगा ये सोचकर सरला तैयार होती हुई उनके कमरे में गई थी। जहां पर मोहन पहले से मौजूद था। सरला के आने के बाद संती देवी ने उसे दरवाजा बंद करने को कहा। संती देवी का आदेश पाकर सरला ने दरवाजा बंद कर दिया और उनके पास आ गई।
तभी संती देवी खड़ी हुई और अलमारी का ताला खोलकर उसमें से गहनों का छोटा सा बक्सा निकाल लाई। और उसे सरला के सामने खोलकर बोली,
" बहु आज तू अपनी बहू लेने जा रही है तो तू भी किसी से कम नहीं लगनी चाहिए। ये तेरे गहने हैं इन्हें पहन ले। नकली गहने मत पहनना। आखिर हमारे परिवार की भी मान मर्यादा इज्जत है"
लेकिन सरला ने कुछ भी नहीं कहा। ये देखकर संती देवी बोली,
" देख बहू, बाहर सब लोग कैसे गहने में लदी फदी तैयार हुई है। तेरे पास भी कोई कमी है क्या? तू भी गहने पहन ले "
संती देवी की बात सुनकर ही सरला ने ये बात कही थी। जिसके बाद मोहन ने सरला से ये छोटी सी बहस की थी।
आखिर मोहन के कमरे से चले जाने के बाद सरला वही पलंग पर बैठ गई। उसे याद हो आया वो दिन जब वो इस घर में बहू बनकर आई थी। संती देवी शुरू से ही दबंग महिला रही थी। मजाल है कि कोई उनके सामने कुछ कह जाए। घर के पुरुष तक उनसे डरते थे। यहां तक की ससुर जी भी।
जब सरला दुल्हन बनकर इस घर में आई थी, तब सिर से लेकर पांव तक गहनों से लदी हुई थी। काफी सारे गहने चढ़ाएं थे ससुराल वालों ने। साथ ही माता-पिता ने भी देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। इतना सोना देखकर उसे अपने आप पर बहुत गर्व होता था।
पर दूसरे दिन ही संती देवी ने वो सारे गहने अपने पास रख लिए। यह कहकर कि बहु तुम ये गहने संभाल नहीं पाओगी। यहां तक कि उसके मायके के गहने भी ले लिए। सरला के पास छोड़े तो चांदी के बिछिया, चांदी की पायल और कानों की सोने की बूंदें।
अब नई-नई शादी में गहनों का शौक तो होता ही है। ऐसा ही शौक सरला को भी था। सरला ने दो-तीन बार गहने मांगे तो संती देवी ने मना कर दिया,
" बहु तुम गहने संभाल नहीं पाओगी। फालतू इतने महंगे मोल की चीज पहनने की जरूरत नहीं है"
"पर मां जी मुझे भी गहने बहुत अच्छे लगते हैं। मेरी सारी सहेलियां गहने पहनती है"
" तो तेरे अच्छे लगने के चक्कर में चोरी हो गए तो कौन जिम्मेदारी लेगा। चुपचाप घर संभाल। सहेलियों के चक्कर में मत पड़"
और आखिर सरला चुप हो जाती। पर इस बार उसके छोटे भाई की शादी पक्की हो गई। मायके से बुलावा भी आ गया। अब उसे पूरा यकीन था कि संती देवी उसे गहने दे देगी। लेकिन संती देवी ने उसे तो सिर्फ उसके मायके के गहने ही दिए, ससुराल के कुछ भी नहीं।
पर सरला तो उसमें भी बहुत खुश थी। कम से कम से गहने तो पहनने को मिल रहे हैं। भाई की शादी में बड़ी खुशी खुशी वो गहने पहन कर गई थी। शादी वाले दिन संती देवी अपनी शादीशुदा बेटी जमुना और बेटे मोहन के साथ वहां पहुंची।
वहां जब सरला तैयार हो रही थी तो जमुना भी उसके पास आ गई।
सरला अपना हार पहन रही थी तो उसे देखकर जमुना ने कहा,
" भाभी ये हार बहुत सुंदर लग रहा है। क्या मैं इसे पहन लूं"
उसकी बात सुनकर सरला एक बार तो चुप हो गई। पर फिर खुशी-खुशी उसने अपना हार उसे दे दिया। जमुना ने भी उस हार को खुशी-खुशी पहन लिया और अपना वाला हार गले से निकाल कर सरला को दे दिया।
" भाभी इसे तुम पहन लो"
" अरे रहने दो जीजी। मैं ये दूसरा वाला हार पहन लूंगी"
" अरे नहीं नहीं। सब सोने का हार पहन रहे हैं तो तुम नकली क्यों पहनोगी? तुम मेरा वाला हार पहन लो। नहीं तो अपना हार वापस ले लो"
जमुना ने जिद की तो सरला ने उसका हार पहन लिया। हार पहनकर दोनों खुशी-खुशी बारात में तैयार होकर रवाना हो गई। संती देवी ने भी देख लिया था कि बेटी ने बहू का हार पहन रखा है और बहू ने बेटी का। पर इससे उन्हें कोई एतराज नहीं था, इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा।
शादी से फ्री होकर सरला भी उन लोगों के साथ ही विदा होकर वापस ससुराल लौट आई। पर पूरे रास्ते उसने जमुना को परेशान ही देखा। यहां आने के बाद सरला जमुना को हार देने गई। तब जमुना उससे बोली,
" भाभी ये हार आप ही रख लो"
जमुना की बात सुनकर सरला हैरान रह गई।
" जीजी कैसी बात कर रही हो। भला आपका हार मैं कैसे रख सकती हूं"
" भाभी मैं झूठ नहीं बोल रही हूं। पता नहीं उस दिन बारात में वो हार कहां गिर गया। मैंने सब जगह ढूंढ लिया। मुझे मिल भी नहीं रहा। अब मैं उस नुकसान की भरपाई कैसे करूं? ये मेरे ससुरालियों का चढ़ाया हुआ हार है इसलिए तुम ये हार को रख लो"
" हार खो गया...। अब मां जी मुझे बहुत डांटेगी। बड़ी मुश्किल से तो उन्होंने मुझे मेरे गहने दिए थे "
"इसीलिए तो कह रही हूं भाभी। आप ये हार रख लो। मैं अपने ससुराल में कुछ भी बहाना बना दूंगी "
" नहीं नहीं जीजी। आप क्यों अपने ससुराल में जाकर झूठ बोलोगी? आपकी सास तो बहुत खतरनाक है। आप अपना हार ले जाओ। मैं यहां जैसे तैसे संभाल लूंगी"
" पर भाभी..."
" पर वर कुछ नहीं। आप तो अपना हार अपने पास रख लो। कोई आपने जानबूझकर थोड़ी ना गुमाया है। गिर गया होगा कहीं नाच गाने में। क्या कर सकते हैं"
कह कर सरला ने जमुना को उसका हार दे दिया। जमुना थोड़ी देर बाद अपने ससुराल रवाना हो गई। इधर संती देवी ने सरला से उसके सारे गहने वापस मांगे। डरते डरते सरला ने जो भी गहने थे वो सब इकट्ठे किए और संती देवी को देने गई। लेकिन उसमें हार न देखकर संती देवी बिगड़ गई,
"बहु हार कहां है? हार तो लेकर ही नहीं आई"
" मां जी वो...वो... हा... हार..."
" शब्द ही खाती रहेगी, या कुछ बोलेगी भी"
" मां जी.... वो हार तो... गुम हो गया"
" हे भगवान! ऐसे कैसे गुम हो गया। बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहता तुझे। इसीलिए मैं तुझे गहने नहीं देती थी"
संती देवी के चिल्लाते ही मोहन भी कमरे में आ गया।
" क्या हुआ मां, ऐसे क्यों चिल्ला रही हो?"
" चिल्लाऊं नहीं तो क्या आरती करूं तेरी पत्नी की? देख सोने का हार गुमा कर आ गई। राम जाने गुमा कर भी आई है या किसी यार को देकर आ गई"
" मां जी ये आप क्या कह रही हो"
अचानक सरला आंख में आंसू लाते हुए बीच में ही बोली।
" ऐसा ना बोलूं तो क्या करूं? महंगे मोल की चीज को गुमा कर आ गई। अरे सोना गुमना अशुभ माना जाता है। जब देखो कहती रहती है गहने दे दो, गहने दे दो। ये रख रखाव रखेगी गहनों का। एक हार तो इससे संभाला नहीं गया। इधर से उधर मायके में गहनों को लटका कर मटकती फिर रही थी। पता नहीं किस यार को दे आई ये वो हार"
संती देवी जो मुंह में जो भी आ रहा था वही बोले जा रही थी। जबकि सरला के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। अपने चरित्र पर लगे लांछन के कारण सरला कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। ये सब सुनकर उसका दिमाग वैसे ही सुन्न रह गया था। उसके मुंह से ये तक नहीं निकला कि हार उसने नहीं, जमुना ने गुमाया है। पर हैरानी की बात थी। मोहन एक शब्द तक नहीं बोला।
उस दिन घर में सबका खाना दुश्वार हो चुका था। कुछ दिनों तक घर का माहौल खराब ही रहा। आठ दिन बाद जमुना अपने पति के साथ घर आई। बेटी जमाई को अचानक घर देखकर संती देवी हैरान रह गई। उन्होंने आने का कारण पूछा तब दामाद जी ने पैसे निकाले और उनकी तरफ बढ़ा दिए। वो हैरानी से उनकी तरफ देखने लगी तब जमुना बोली,
" मां मुझसे भाभी का हार गुम हो गया था। भाभी को मैंने अपना हार लेने के लिए कहा था। पर भाभी ने मना कर दिया। मां आपकी बहू बहुत अच्छी है। मुझे मेरे ससुराल में ताने ना सुनना पड़े इसलिए उसने हार लेने से मना कर दिया। बड़ी मुश्किल से आपके दामाद जी को बताया। तब जाकर ये पैसों का बंदोबस्त करके लाए हैं। इन पैसों से आप भाभी के लिए हार खरीद लेना"
जमुना के मुंह से ये सब सुनकर संती देवी कुछ बोल ना पाई। मोहन भी अपनी नज़रें झुका कर चुपचाप खड़ा रहा जबकि सरला रो पड़ी। आखिर जमुना ने सरला को चुप कराया। पर संती देवी और मोहन से तो ये भी नहीं हुआ कि उससे माफी ही मांग ले।
बस वो दिन था और आज का दिन है। सरला ने कभी सोने के गहनों के लिए नहीं कहा। चांदी की बिछिया और चांदी की पायल के अलावा कभी सोने के गहनों को पहना भी नहीं। ससुराल तो क्या, मायके में भी इतनी शादियां हो गई। पर हर जगह वो नकली गहने ही पहने रहती। अगर कोई कहता तो जवाब दे देती,
" कम से कम इन्हें बदल कर तो पहन सकती हूं। सोने के गहनों में तो एक ही डिजाइन को पहनना पड़ता है"
ये सब याद करते-करते सरला की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। तभी अचानक बाहर से जमुना की आवाज आई,
" भाभी जल्दी आओ। बेटे को आज दूल्हे की तरह तैयार भी तो करना है"
जमुना की आवाज से सरला की तंद्रा टूटी।
"जी जीजी, अभी आई"
कहकर सरला पलंग से उठ खड़ी हुई अपने बेटे को दूल्हा बनाने के लिए और अपनी बहू को घर लाने के लिए। अपने उन्हीं नकली गहनों के साथ जो उसके सच्चे साथी बन गए। और जो उसे उस बुरी यादों की टीस से दूर करते थे।
और जो मोहन और संती देवी को बार-बार याद दिलाते थे कि ना ही गलत बोलना चाहिए और ना ही गलत सुनना चाहिए।
Babita patel
28-Apr-2024 11:00 AM
V nice
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Mohammed urooj khan
27-Apr-2024 12:07 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Reena yadav
25-Apr-2024 10:48 PM
👍👍
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